एक मुसीबत सौ सहारे
विकासपुरी नाम के एक गांव में एक परिवार रहता था। परिवार में दोनों पति पत्नी (कर्मवीर और देविका) बूढ़ी माँ और उनकी इकलौती बेटी सुशीला रहते थे। कर्मवीर जी गांव के प्राइमरी स्कूल में टीचर थे। एक मुसीबत सौ सहारे . उन्होंने घर पर चार भैंस पाल रखी थी जिनको घास सुशीला ही खिलाती थी परिवार सुख शांति के साथ अपना जीवन यापन कर रहा था। अचानक एक दिन उस परिवार को ठाकुर के बेटे राणा की नजर लग गई। एक दिन जब सुशीला कॉलेज जा रही थी तो रास्ते में सुशीला को रोककर वह सुशीला के जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा। (सुशीला स्वस्थ लड़की थी भैंसो की देखभाल करने के कारण उसका शरीर मजबूत था।) उसने राणा को एक थप्पड़ लगा दिया थप्पड़ लगते ही राणा जमीन पर गिर पड़ा।और गिरते ही वह एक बात और समझ गया कि वह सुशीला के साथ जबदस्ती नहीं कर सकता और वह भाग खड़ा हुआ।
शाम को सुशीला ने यह बात अपने पिता को बताई और पिता ने कहा कि सुबह ही वे सरपंच से मिलेंगे। अगले दिन सुबह वे अपने दो पड़ोसियों के साथ सरपंच से मिलने चल दिए। जब वे सरपंच से बाते कर रहे थे तभी पड़ोस का एक लड़का दौड़ता हुआ आया और चिल्लाते हुए बोला राणा ने सुशीला के उपर तेजाब डाल दिया।
तेजाब की बात पूरे गांव में फैल गई गांव में आदमी के मुंह के अनुसार बाते होने लगी। गांव के लोगो ने चंदा इकट्ठा करके कर्मवीर को पैसे दिए, जिससे जो बन पड़ा उसने वैसी सहायता की। राणा के खिलाफ पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई। राणा को पुलिस पकड़ कर ले गई। लेकिन एक हफ्ते में ही वो जमानत पर छूट गया और गांव में फिर खुले सांड की तरह घूमने लगा। उधर सुशीला का परिवार पैसों के इंतजाम में लग गया क्योंकि डॉ0 ने एक साथ २५०,००० रू मांगे थे। कर्मवीर जी का खेत मकान सब कुछ बिक गया और बिटिया ठीक होकर घर लौट आई। इस बीच राणा एक बार और जेल गया और मात्र २०,०००₹ की रिश्वत देकर घर आ गया। राणा को नाबालिक होने के कारण अदालत ने बेकसूर बताया और सुशीला को गांव वालो ने बेचारी बदसूरत कहना शुरू कर दिया।
लेकिन समय कभी नहीं रुकता, बदलाव प्रकृति का नियम है सुशीला के उपर तेजाब डाले जाने की खबर तेजी से फैली। और शहर मे रह रहे अशोक ने भी यह खबर पढ़ी और वह अपने एक दोस्त राम को साथ लेकर सुशीला के परिवार से मिलने चल दिया। रास्ते में वह सोच रहा था कि कितने संघर्षों के बाद वह बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर बना था। एक मुसीबत सौ सहारे
जल्द ही वे विकासपुरी पहुंच गए। एक फल वाले से मा0 कर्मवीर का पता पूछकर अशोक उनके घर पहुंच गया। अशोक देखता है पूरा परिवार उदास था सुशील के चेहरे और छाती पर पट्टियां बंधी थी। पड़ोस के कुछ लोग कर्मवीर जी को हिम्मत देने के लिए आए हुए थे। अशोक ने सभी को प्रणाम किया और उनके पास खाट पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद अशोक ने अपना पोपट जैसा मुंह खोला और परिवार के सभी सदस्यों के चेहरे खिल गए। खुशी की जैसे लहर दौड़ गई। और पड़ोसी जो हिम्मत बढ़ाने के लिए आए थे अं सभी के सीने पर सांप लोट गए।
अशोक ने कहा "मै सुशीला से शादी करना चाहता हूं और वो भी बिना दहेज के"
पड़ोसियों से रहा नहीं गया और वे बाहर चले गए। बाहर जाकर रम्भा बोली "इससे तो मेरी ज्योति की शादी होनी चाहिए थी इस मुहजली में पता नी क्या देख लिया इस लड़के ने ।"
माहौल को खुशनुमा करके अशोक वापस अपने घर आ गया। एक तारीख निश्चित करके अशोक और सुशीला की शादी कर दी गई।
कुछ ही दिन बाद नया माहौल बदलने की परिस्थितियां सामने आने लगी। सुशीला को पता चला कि अशोक के परिवार से कोई भी इस शादी से खुश नहीं था। अशोक की मां बुदबुदाती रहती "बहू हमारी क्या सेवा करती हमें ही बहू की सेवा करनी पड़ रही है।" छोटी बहन को एक परी जैसी भाभी चाहिए थी। ससुरजी भी कुछ नहीं बोलते थे। सब को कुछ कमी महसूस होती थी। परिवार में एक खीचाव से था।
अशोक के परिवार और सुशीला के बीच तनाव आने लगा। कारण था दो अलग अलग विचारधाराएं। अशोक सभी को समझता लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अशोक की मां परंपरावादी महिला थी। दूसरी ओर सुशीला प्रगतिशील महिला थी। इसी के साथ एसिड पीड़ित होने के कारण वह बदसूरत भी थी। लेकिन अशोक का परिवार उसके बड्सुरत चेहरे से कोई ऐतराज नहीं करता था मनमुटाव तो विचारधारा के कारण था। सुशीला ने हिम्मत नहीं हारी, वह तो पूरे परिवार को प्रगतिशील बनाना चाहती थी।
एक अंधेरा लाख सितारे।
एक मुसीबत सौ सहारे।
जब एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा खुल जाता है।।
एक मुसीबत सौ सहारे।
एक मुसीबत सौ सहारे।
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