Saturday 1 February 2020

Holi Festival March 2020 in India in hindi

Holi Festival March 2020 in India in hindi


Holi
Holi Festival March 2020

होली का समय:


दिनांक : 09 मार्च 2020


होलिका दहन उचित समय :
शाम 06:22 से 08:48 तक

भद्रा पूंछ :
सुबह 09:37 से 10:38 तक


भद्रा मुख :
सुबह 10:38 से 12:19 तक

पंचांग के अनुसार होली का समय दो घंटे चौबीस मिनट का है।

रंग वाली होली :

10 मार्च

फाल्गुन पूर्णिमा तिथि आरंभ :
09 मार्च सुबह 03:03

Holi ke rang
holi ke rang

ब्रज की होली के कार्यक्रम :


३० जनवरी :

३० जनवरी से बरसाना में होली का डांडिया गढ़ेगा और देश के विभिन्न कवियों द्वारा समाज गायन होगा।

२१ फरवरी :

होली की प्रथम चौपाई लाडली जी मंदिर से रंगीली गली तक।

२७ फरवरी :

रमंतैरी आश्रम महावन में आश्रम की ओर से टिशू फूल बरसाए जायेंगे और केसर गुलाल से होली खेली जाएगी।

०३ मार्च :

लड्डू होली खेली जाएगी और द्वितीय चौपाई निकलेगी।

०४ मार्च :

रंगीली गली में लठमार होली खेली जाएगी।

०५ मार्च :

नंद गांव और गांव रावल में लठमार होली होगी।

०६ मार्च :

बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली होगी।

०७ मार्च :

गोकुल में छड़ीमार होली होगी।

०९ मार्च :

होली डाला का नगर भ्रमण होगा जो द्वारकाधीश मंदिर से शुरू होगा।

१० मार्च :

पूरे मथुरा/ देश में होली खेली जाएगी।

११ मार्च :

मुखराई गांव में चरकुला नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम

मेरो ब्रज एप :

उत्तर प्रदेश तीर्थ विकाश परिषद ने ये एप तैयार किया है। इस एप में ब्रज के सभी दर्शनीय स्थल, धार्मिक स्थल की जानकारी है ब्रज का पूरा नक्शा है जिसे देखकर सभी मंदिरों के रास्ते पता किए जा सकते है ये समय और ठगी दोनो से बचाता है आपको यहां घूमने के लिए गाइड की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। इसमें जनसुविधा केंद्र, पार्किंग, होटल, रेस्टोरेंट, पुलिस सहायता केंद्र की जानकारी मिलती है समय समय पर एप अपडेट होता रहता है।
Holi
holi

होली उत्तर भारत का प्रमुख त्यौहार है और पूरे भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा दुनिया में जहां भी हिन्दू धर्म के लोग रहते है वहां पर यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। सब लोग गले मिलते है अगर कोई दुश्मनी भी है तो उसे भुला कर प्यार से गले मिलते है चारों ओर खुशियां और हरियाली होती है। सरसो के खेतों में पीले पीले फूल खिल जाते है पेड़ पौधों में नई कोपले निकलती हैं गेहूं मे बालिया पड़ जाती है। सभी लोग एक दूसरे के घर जाकर खाना खाते है और अपने घर खाना खिलाते है भांग की ठंडाई पी जाती है और एक दूसरे को रंग लगाते है और खूब मस्ती करते है। कुछ लोग आधुनिकता में बह कर शराब का नशा भी करते है।

होली की परम्परा :

हमारे देश में होली का त्यौहार बहुत पुराने समय से मनाया जा रहा है। इस से ३०० वर्ष पूर्व भी होली का त्यौहार मनाए जाने के सबूत मिलते है। यह त्यौहार पुराने समय में हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धर्मो के लोग मनाते थे। जिसके इतिहास में अनेक सबूत मिलते है।  बादशाह अकबर बेगम जोधाबाई के साथ होली खेलते थे बादशाह जहांगीर नूरजहां के साथ होली खेलते थे। और भी मुस्लिम बादशाहों के भी होली खेलने के सबूत मिलते है। यह त्यौहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। इसे महिलाएं संतान प्राप्ति और घर की सुख शांति के त्यौहार के रूप में मनाती है। मुख्य रूप से निम्न परंपराए हमारे देश में मानी जाती है।

होली का झंडा :

बसंत पंचमी के दिन, होली से ४० दिन पहले, सर्वप्रथम एक खुली जगह या चौराहे के बीच होली का झंडा गाड़ जाता है। होली की परंपराओं में यह सबसे पहला काम होता है इसके बाद होली के दिन शुरू हो जाते है।

होली बनाना :

मौहल्ले और गांव के लोग सुखी लकड़ियां इकट्ठी करके होली के झंडे के चारो ओर होली बनाते है। लकड़ियों से होली बनाने के बाद उस पर गाय के गोबर से बने उपले लगाते हैं साथ ने ओर लकड़ियां भी।

पूजा :

महिलाएं मंगल गीत गाकर होली की पूजा करती है होली के सात चक्कर लगाकर कलावे के धागे से होली को लपेटा जाता है। हल्दी के पानी से होली को ठंडा (शांत) सात चक्कर लगाकर किया जाता है घर में अच्छे अच्छे पकवान बनाए जाते है जिन्हे पूजा करते समय रखा जाता है होली का मुख्य खाना गुंजिया है।

होलिका दहन :

नियत समय और दिन पर परम्परागत समय पर होलिका दहन किया जाता है। पंडित जी मंत्रोच्चारण के साथ होलिका दहन करवाते है। बच्चे गले में मेवो और मीठे की माला पहनकर और हाथो में भरभोला (गाय के गोबर से बनी माला) लेकर जाते है।

होला :

जब होलिका दहन किया जाता है तब होली में बहुत ऊंची ऊंची लपटे निकलती है और गांव के सभी स्त्री पुरुष मिलकर मंगल कामना करते है महिलाएं मंगल गीत गाती है। जहां चने होते है वहां  चने की फलियों और जहा गेहूं होता है वहां गेहूं कि बालियो को होली की आग में भूनकर सभी प्रसाद की तरह आपस मै बांट कर खाते है। होलिका दहन के समय मिठाई को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। 
Fulo ki holi
Fulo ki holi

दुल्हेंडी :

होली से अगले दिन दुल्हेंदी होती है सब लोग अच्छे अच्छे पकवान बनाकर एक दूसरे को खिलाते है एक दूसरे पर रंग डालकर और गुलाल से होली खेलते है। जगह जगह होली के गाने चलते है लोग डांस करते है भांग की ठंडाई पी जाती है। अब कुछ लोग आधुनिकता में बह कर शराब पीने लगे है। खूब खाना खिलाना चलता है खूब हुड़दंग होता है होली के रंगों में केमिकल होने के कारण अब कुछ लोगो ने रंगों से होली खेलना बंद कर दिया है। कुछ लोग फूलों से होली खेलने लगे है जो पर्यावरण के लिए भी बहुत अच्छा है।

होली की कहानी 


होली बहुत ही प्राचीन त्यौहार है। ये कब से चला अा रहा है कितना प्राचीन है इसका कोई पक्का प्रमाण नहीं है मुस्लिम बादशाह जहांगीर ने इसे इदे गुलाबी नाम से पुकारा था।

हिन्दू धर्म में इसके लिए सबसे प्राचीन कथा है।
पुराने समय में हिरण्यकस्यप नाम का एक बहुत ही शक्तिशाली राजा था उसने अपने पूरे राज्य में भगवान की पूजा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिसका उनके अपने छोटे से पुत्र प्रहलाद ने विरोध किया और वह भगवान का ध्यान करता रहा। हिरण्यकश्यप ने उसे अनेक प्रकार से डराया धमकाया लेकिन वह नहीं माना। उसके बाद उसे हिरण्यकश्यप ने मृत्युदंड देने का आदेश दिया। जल्लादों ने उसे ऊचे पहाड़ से नीचे फेंक दिया लेकिन प्रहलाद नहीं मरा, इसके बाद जल्लादों ने उसे गहरे समुन्द्र में फिकवा दिया लेकिन प्रहलाद नहीं मरा। जल्लादों ने इसके बाद उसका सर कलम करने का फैसला लिया। लेकिन जैसे ही तलवार प्रहलाद की गर्दन पर मारी गई वह फूलों कि माला बन गई। इसके बाद जल्लादों ने यह सूचना हिरण्यकश्यप को दी कि वे प्रहलाद को मारने में असफल रहे है। हिरण्यकश्यप ने एक लोहे के खंबे को गर्म करके उससे प्रहलाद को बांधने का आदेश दिया प्रहलाद ने खुद ही उसखंबे को दौड़ कर पकड़ लिया और उससे लिपट गया क्योंकि उसने एक चींटी को उस खंबे पर चढ़ते हुए देख लिया था। फिर हिरण्य कश्यप ने प्रहलाद  को खोलते तेल के कढ़ाए में डाल दिया लेकिन प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ। 

हिरण्यकश्प की बहन होलिका को वरदान में एक चुन्नी मिली हुई थी जिसे ओढ़ने पर वह आग में नहीं जल सकती थी उसने प्रहलाद को आग में लेकर बैठने का फैसला लिया। लकड़ियों का एक बहुत ऊंचा ढेर लगाया गया जिस पर होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गई। जैसे ही तेज आग जली होलिका की चुन्नी गर्म हवा में उड़कर प्रहलाद के ऊपर अा गई और होलिका जलने लगी हिरण्यकश्यप को सूचना दी गई लेकिन होलिका को कोई नहीं बचा पाया। हिरण्यकश्यप ने होलिका की याद में होलिका नाम के नए त्यौहार की शुरुआत की जिसे उस होलिका के दहन के दिन की तरह ही उसी प्रकार मनाया जाता है जिस प्रकार होलिका का दहन हुआ था। 

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