परवरिश
रहमनगर के ठाकुर दुर्जन सिंह एक कर्मठ और बहुत ही दयालु इंसान थे। वे अपने गांव के लोगो पर तनिक भी परेशानी नहीं आने देते थे, किसी को कोई परेशानी हुई नहीं कि ठाकुर साहब उसकी परेशानी दूर करने पहुँच जाते थे। तीन बेटियों के अलावा ठाकुर साहब का एक बेटा भी था, ठाकुर प्रताप। ठाकुर साहब ऐसी कोई समस्या पैदा नहीं होने देते थे जो उनके बेटे को परेशान करे। ठाकुर प्रताप पिता द्वारा दी गयी छूट का कोई गलत फायदा नहीं उठाता था, वो भी एक अच्छा बेटा था बहुत ही सीधा सच्चा इंसान। जब प्रताप के स्कुल के एग्जाम होते थे तो ठाकुर साहब, प्रताप को पास कराने के लिए मास्टर जी के पास पहुँच जाते थे। किसी भी खेल को सही से न खेल पाने के बावजूद वह स्कूल की हॉकी टीम का सदस्य था, ठाकुर साहब की कृपा से।
अच्छी आबोहवा, अच्छे संस्कार और पूर्ण संरक्षण के बीच प्रताप बड़ा हो गया। बड़ा होने के बाद उसे खेतो और जानवरों की जिम्मेदारी सौप दी गई। ठाकुर साहब चाहते थे कि प्रताप को धीरे धीरे काम की जिम्मेदारियां सौपी जाये। लेकिन प्रताप को काम समझ ही नहीं आ रहा था। ठाकुरसाहब ने अपने आप भी काम समझाया लेकिन प्रताप के कुछ समझ नहीं आया।
एक दिन ठाकुर साहब से उनके एक सिंधी दोस्त मिलने आये तो ठाकुर साहब ने उनसे अपने बेटे के बारे में बताया। सिंधी दोस्त ने तुरंत कहा, लगता है घने लाड़ प्यार में पाला है उसे। ठाकुर साहब सुनते ही चौक गए और बोले हाँ ऐसा ही है।
सिंधी बोला, किसी को जितना ज्यादा प्यार और संरक्षण मिलता है वो उतना ही नाकाबिल और कमजोर बनता है। पक्की मिट्टी में सही पानी सही धूप और पूरे पौषक तत्व पाने वाले मैदानी पेड़ एक तूफान आने पर गिरने लगते है लेकिन रेगिस्तान में उगे पेड़ नागफनी के पेड़ भुरभुरी रेत, काम पानी और कम पोषक तत्वों के बावजूद बड़े बड़े तुफानो को भी झेल कर खड़े रहते है। जरूरत बच्चो को सही दिशा देने की होती है ज्यादा दाब बोच कर रखने की नहीं होती।
सिंधी अपने बच्चों को किसी दूसरे के पास नौकर की तरह लगाते है उसके बाद उसे अपने धंदे पर बैठाते है। जिससे वे काम का महत्त्व समझ सके।
Nice story bro
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