Monday 9 March 2020

एक डरावना सफर - कहानी

Ek drawna Safar

बगीचा
Ek drawna Safar
(इस फोटो को pexels.com की फ़्री फोटो गैलरी से लिया है)

रात के 11:00 बज रहे थे। मुझे जंगल जैसा रास्ता पार करके गांव में अपने घर पहुंचना था। जंगल जैसा इसलिए क्योंकि राशिद के जिस बाग में हम दिन में प्रतिदिन ठंडक और मस्ती के लिए जाते हैं आज रात में वो दो किलोमीटर लंबा बाग घने और विशाल जंगल
जैसा लग रहा था। जिस बाग के हम चप्पे चप्पे से वाकिफ है उस जंगलनुमा बाग में घुसते हुए मुझे बहुत डर लग रहा था। मै जानता था कि जंगल नुमा बाग में कोई जंगली और खतरनाक जानवर नहीं है फिर भी मुझे तो रात के अंधेरे में झींगुर की आवाज के बारे में सोच कर ही डर लग रहा था।

मैंने बस से उतर कर अपने मोबाइल में टाइम देखा, 11:10 हो रहे थे। मै अपने गांव के रास्ते पर चल दिया। मुझे मेरे अलावा दूसरा कोई भी उस रात के अंधेरे में दिखाई नहीं दिया। सड़क पर तो रोशनी थी लेकिन जैसे ही गांव के रास्ते पर चलना शुरू हुआ, अंधेरा घना होता गया। आसमान तारो से और दिल डर से भरा हुआ था। झाड़ियां भी ऐसी लग रही थी जैसे भूत बैठा हुआ है। 

अब वो घड़ी आ गई थी जिसका मेरा दिल, जिगर और शरीर बेसब्री से इंतिजार कर रहे थे। जिसके डर के कारण मै गर्मी में भी कांप रहा था वो था राशिद का बाग, जो मुझे दिखाई देने लगा था। मुझे उसके अंदर से ही निकलकर जाना था। मुख्य रास्ता तो बाग का चक्कर काट कर था जो लगभग 5 किलोमीटर लंबा होता। बाग से होकर जाने से वही रास्ता दो किलोमीटर लंबा था। 

बाग के पास पहुंच कर मै थोड़ी देर रुका, अपनी हिम्मत जुटाई, अपने माता पिता का नाम लिया और बाग में घुस गया। बाग कहने को तो पूरा सुनसान पड़ा था लेकिन झींगुर और छोटे छोटे कीड़े मकोडो की डरावनी आवाज़ों ने मेरी हालत पतली कर रखी थी। ऐसा लगता था जैसे मेरी पाचन क्रिया बहुत तेज हो गई है और पेट में पानी हो गया है। लेकिन मै भी बड़ा ही हिम्मत वाला था। मै चलता रहा, मै बाग में अभी मुश्किल से 100 मीटर ही घुसा था कि मुझे अपने रास्ते पर एक सांप चलता हुआ दिखाई दिया तभी दूसरा सरप्राइज हुआ, आम के पेड़ से एक नारियल नीचे सीधा सांप के मुंह पर गिरा। सांप छटपटाने लगा। मै, जो सांप को देख कर पहले ही रुक गया था उसके घायल होने से और डर गया। दूसरा मेरे ये बात समझ में नहीं आयी की आम के पेड़ से आम टपकना चाहिए था नारियल क्यों। मैंने ध्यान से देखा पेड़ पर कोई बंदर वगैरह तो नहीं, लेकिन वहां कुछ नहीं था। अब मेरे समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे घायल सांप से डरना है या भूतिया नारियल से। या फिर अंधेरे और डरावनी आवाज़ों से। मैंने नारियल और सांप के दूर से निकल कर जाना ज्यादा उचित समझा, इसलिए मैंने बड़ा सा रास्ते का चक्कर काटा और सांप और नारियल से दूर से निकलकर आगे अपने रास्ते पर चल दिया। अंधेरे में मै आगे बढ़ता जा रहा था कि मुझे दूर से ही दो चमकदार आंखे दिखाई दी। मेरे दिमाग में तुरंत भेड़िए का भय बैठ गया। ये पक्का भेड़िया ही था। मै तुरंत अपने पास वाले पेड़ की और भागा क्योंकि अब जान के लाले पड़ने वाले थे। तभी मुझे एक आवाज सुनाई दी, मियाउ मियाऊ । मुझे अपने उपर ही हंसी आ गई कि मै एक बिल्ली से डर गया। 

मै चाह रहा था कि घर जल्दी आ जाए या फिर मै उल्टा वापस भाग जाऊ। लेकिन कुछ नहीं हो सकता था मुझे ऐसे ही घर जाना था ये बात पक्की थी। ये सोच कर मैंने हिम्मत जुटाई और तेजी के साथ आगे बढ़ने लगा। अपने माता पिता का नाम लेता रहा और आगे बढ़ता रहा। लगभग एक किलोमीटर का सफर मैंने पार कर लिया था तभी मुझे कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दी। मैंने ना कुछ देखा ना कुछ सुना सीधा पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ कर मैंने इधर उधर देखा। दो बड़े बड़े कुत्ते मेरी ओर दौड़े चले आ रहे थे। मै उन्हें देखते ही पहचान गया। दो बुल्डोग बाग की रखवाली के लिए पाले गए थे उन्हें दिन में बांध कर रखा जाता था और रात में खोल दिया जाता था। मै जानता था वे बड़े ख़तरनाक कुत्ते थे। थोड़ी देर बाद चौकीदार वहां पहुंच गया और उसने आवाज लगाई, कौन है वहां। मै जोर से बोला, बहादुर अंकल मै हूं राहुल। चौकीदार ने मुझे नीचे उतारा और उसने फिर मुझे अपने लड़के के साथ मेरे घर भेजा।

अपने घर पहुंच कर मैंने सोचा जब चौकीदार अंकल का लड़का मुझे घर छोड़कर अकेला बाग में जा सकता है तो मै क्यों नहीं अकेला अपने घर पहुंच सकता था। वो लड़का मुश्किल से 13 या 14 साल का होगा और मै 21 साल का था।

मै अब अकेला रात में सफर करता हूं और मुझे अब डर भी नहीं लगता। उस रात चौकीदार अंकल के लडके से मुझे बहुत हिम्मत मिली। अब मुझे परछाई में भूत नहीं दिखाई देते है।

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