कोरोना का कहर चारो और फैला हुआ था। पुलिस की खाद्य सामग्री वितरण वाला वाहन दिल्ली के शाहीनबाग इलाके में जाकर रुका। वाहन से कांस्टेबल विकास नीचे उतरा। उसने देखा कि जगह तो वही है जहाँ से खाना पहुँचाने के लिए फोन आया था। लेकिन यहां तो कोई गरीब का मकान दिखाई नहीं दे रहा है। जिस फोन नंबर से फोन आया था उसने उस नंबर पर फोन करके पता किया तो दूसरी ओर से जवाब आया, मै वही आता हूँ। 35-40 साल का एक आदमी एक मकान से बाहर आया। विकास के पूछने पर उसने अपना नाम रितेश बताया। विकास ने पूछा कि आपने ही खाना मंगाया है। रितेश ने हाँ में सिर हिलाया।
विकास बोला, ये खाना गरीबो के लिए है, आप जैसे संपन्न लोगो के लिए नहीं है। आपको शर्म नहीं आती गरीबो के हक का खाना अपने यहां मंगाते हुए। रितेश की आँखों में आंसू आ गए। उसने कहा, हाँ सच में हम संपन्न है लेकिन सरकार ने कहा था किसी को भूखा नहीं मरने देंगे। रितेश की आँखों में आंसू देखकर विकास का मन भी दुखी हुआ। उसने रितेश से पूछा, भाई साहब क्या हुआ।
रितेश ने बताया, उसने कुछ अपने पास से और कुछ रिस्तेदारो से उधार लेकर स्क्रीन प्रिंटिंग का काम शुरू किया था वह टीशर्ट्स पर प्रिंट करते थे काम को शुरू हुए अभी दो महीने ही हुए थे कि दिल्ली के शाहीन बाग में धरना प्रदर्शन होने लगा। कुछ दिन बाद वहाँ दंगे शुरू हो गए। काम में नुकसान चल रहा था कि अचानक ही ये कोरोना का संकट आ पड़ा। जो काम करके बाजार में भेजा हुआ था उसका भी पैसा नहीं आया। घर पर पांच मजदूर जो मशीन पर काम करते थे उन्हें बैठा कर खिलाना पड रहा था। एक दिन दिल्ली में सूचना मिली कि जिसे अपने घर वापस जाना है वो जा सकता है, ये सुनते ही मजदूर अपने घर जाने लगे। मेरे पास जो पैसे थे मैंने उन पांचो मजदूरों में बाँट दिए। मुझे बाद में पता चला कि सरकार द्वारा लोगो को घर भेजने की किसी ने अफवाह फैलाई थी सरकार ने किसी को भी वापस भेजने का कोई वायदा नहीं किया था। मैं मजदूरों के वापस आने के डर से डर गया। मजदूर वापस नहीं आये, मेरे पास भी घर में जो राशन रखा था वही था, पैसे मैंने सब मजदूरों को दे दिए थे। अब तो घर में रखा हुआ राशन भी ख़त्म हो गया था, सुबह जब बच्चे भूख से रोने लगे तो मैंने आपको फोन किया।
विकास की आँखे भी नम हो गयी थी उसने रितेश को खाने के पैकेट दिए और आगे बढ़ गया।
सरकार ने इस बंद में किसी को भूखा न रखने का वायदा किया है। गरीब तो उस मध्यम वर्ग के लोग भी हो सकते है जिन्होंने साफसुथरे कपडे सलीके से पहने है, गरीब की पहचान केवल गंदे कपड़ो और घर की अव्यवस्था से करना गलत है। उस मध्यम वर्ग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए जो ना तो मांग सकता है ना ही किसी को कुछ बता सकता है।
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